रामनवमी बैसाखी व रमजान का समय था जब 1919 में अमृतसर राष्ट्रीय एकता का केंद्र बन चुका था। गांधी जी ने रोलेट एक्ट कानून के विरोध में 6 अप्रैल को हड़ताल की घोषणा की थी। जो सफल रही।
यह आंदोलन सतपाल और सैफुद्दीन किचलू के नेतृत्व में हुआ था। इन दोनों नेताओं का अमृतसर में लोगों के बीच सौहार्दपूर्ण एकता स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा था। जिससे अंग्रेजी अफसर परेशान थे की इस एकता से सम्राज्य के खिलाफ विरोध ताकतवर हो गया था।
9 अप्रैल 1919 को रामनवमी का पावन पर्व था, जिसे अमृतसर में हिंदू-मुस्लिम-सिख सभी ने एक साथ मनाया। इस अवसर पर ऐतिहासिक जुलूस निकाला गया, जिसमें मुस्लिम और सिख भाईचारे ने भी जूलूस के साथ भाग लिया। पूरे जुलूस में “हिंदू-मुस्लिम-सिख एकता जिंदाबाद” के नारे गूंजे।
यह पहला मौका था जब रामनवमी सिर्फ हिंदुओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गई। रामनवमी पर हिंदू-मुस्लिम एकता देखकर ब्रिटिश प्रशासन घबरा गया। इससे अंग्रेजों ने तय किया कि यह एकता समाप्त करनी होगी।
अंग्रेजों को यह एहसास हुआ कि अगर भारतीय एक हो गए, तो उनका “फूट डालो और राज करो” का खेल खत्म हो जाएगा।इसलिए, अगले ही दिन 10 अप्रैल को ब्रिटिश सरकार ने सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया।
जनता ने जब इस गिरफ्तारी का शांति से विरोध शुरू किया, तो पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग कर दी। जिससे लगभग 20 लोग मारे गए। इसके प्रतिक्रिया में चारों तरफ दंगा भड़क गया। 5 अंग्रेज भी मारें गये तथा ब्रिटिश प्रशासन से जुड़े लोगों पर हमले हए।
इस घटना के बाद जब हताहत लोगों जनता दफनाने जा रही थी। तब लोगों पर ब्रिटिश पुलिस द्वारा तरह तरह के प्रतिबंध लगा कर परेशान किया गया। ब्रिटिश शासन के ऐसे कृत से लोगों ने 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में इसके विरोध में इकट्ठा होना तय किया।
रामनवमी की एकता और विरोध में हुए नुकसान से डरी ब्रिटिश सरकार ने पूरे शहर को सैन्य कब्जे में ले लिया और जनता को दबाने के लिए दमनकारी नीतियां अपनाईं।
पुलिस द्वारा ब्रिटिश शासन के आदेश पर ऐसे हथकंडे अपनाए गए। जिससे की जनता भड़क जायें और उन्हें अधिकतम बल प्रयोग करने का मौका मिले।
बैसाखी के दिन(13 अप्रैल 1919) , हजारों लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए, जहां जनरल डायर ने बिना चेतावनी के निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दीं। इस नरसंहार में हिंदू, मुस्लिम, सिख, दलित—हर वर्ग के लोग शहीद हुए।
निहत्थे लोगों पर यह गोलियां इसलिए चलाई गई क्योंकि ब्रिटिश सरकार को यह डर था कि अमृतसर जैसी यह एकता बनी रहती तो उन्हें आगे बहुत ही परेशानी होती।
हम धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के नाम पर बंट जाएंगे, तो हम उसी कमज़ोरी का शिकार होंगे, जिसे ब्रिटिश सरकार ने 1919 में भारतीयों पर लागू करने की कोशिश की थी।
जब कोई सरकार या शक्तियां लोगों को बांटने की कोशिश करती है, तो उसका एक ही उद्देश्य होता है—जनता को कमजोर करना, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष न कर सकें।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास गवाह है—एकता से ही अधिकार मिलते हैं, और बंटवारे से केवल कमज़ोरी आती है।