
यह एक पेड़ और छोटी चिड़िया की पक्की दोस्ती की बहुत ही सुंदर कहानी है। इसके लेखिका ऐन्ड्रीला मित्रा है।
हिंदी में अनुवाद नीरा जैन व पथ्वीराज मोंगा जी का है।
यह कहानी एक पेड़ की है वह बिल्कुल अकेला था
पेड़ एक बड़े से खेत के ठीक बीच में खड़ा था।
उस खेत में और कोई पेड़ नहीं था वहां कोई पक्षी नहीं आता था।
इसलिए हमारी इस कहानी का पेड़ बड़ा अकेला था।

पेड़ के मन में ना जाने कितनी कहानियां थी, लेकिन वह किसे सुनाए?
चांद। तारे। सूरज। सभी दूर थे। ऊपर आकाश में, बहुत- बहुत दूर।
आखिर पेड़ किस से बात करें!
अचानक एक दिन एक नन्ही सी नीले रंग की चिड़िया आई और पेड़ पर बैठ गई। वह अपना रास्ता भटक गई थी।

थोड़ी देर बाद अंधेरा घिर आया। ऐसे में वह घर कैसे जाए? इसलिए चिड़िया ने रात पेड़ पर ही बिताने का निर्णय लिया।
उस रात पेड़ और नन्हे नीली चिड़िया दोस्त बन गए। वे पूरी रात एक दूसरे से बातें करते रहे।
भोर हो गई। अब चिड़िया को जाना था।
चिड़िया ने पेड़ से कहा, “प्रिय मित्र इतने उदास क्यों होते हो। मैं फिर आऊंगी।” इतना कहते हुए चिड़िया उड़ कर दूर चली गई।
पेड़ चिड़िया की राह देखता रहा। कई दिन बीते, कई रातें बीतीं। नीली चिड़िया लौटकर नहीं आई।
पेड़ की आंखें भर आई और आंसू बहने लगे-टप… टप… टप…
पता नहीं, इसी तरह कितने दिन गए।
एक सुबह पेड़ ने देखा कि उसके आसपास आंसुओं से एक तालाब बन गया है।

अब पेड़ उस तालाब से बातें करने लगा। वह दिन भर बातें करता रहा। लेकिन मन में बसी कहानियां क्या एक दिन में सुनाई जा सकती थी!
अपने पांव तलाब में जमाए पेड़ लगातार बातें करता रहा। वह बातें करता हुआ तालाब में उस टहनी की परछाई को देखता रहता, जिस पर कभी आकर नीली चिड़िया बैठी थी।
अब हमारे पेड़ को नहीं लगता कि वह अकेला है।