
द ब्रदर्स करमाज़ोव -फ्योदोर दोस्तोएवस्की का एक और मनोवैज्ञानिक और वास्तविकता से भरा उपन्यास। यह इनकी आखिरी रचनाओं में से हैं।
जितना भी मैंने दोस्तोएवस्की जी को पढ़ा है। उस हिसाब से ये मेरे लिए एक जटिल लेखक हैं। फिर भी मेरे द्वारा इनको पढ़ना रोचक और आनंद का अनुभव कराता है। इनके रचित पात्र और उनके कहानी का विस्तार उस समय के रुसी समाज और व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक अध्ययन और वास्तविकता को सामने रख देते हैं।
जैसा कि इस किताब के शुरुआत में लिखा है कि उनका पुरा लेखन उपन्यास ‘ब्रदर्स करमाज़ोव’ में समाहित है। अपराध और दंड की अपेक्षा इस रचना मेंआध्यात्मिकता की तरफ ज्यादा झुकाव उनके लेखनी में दिखा है। मैंने इस रचना को खंड-1 के संत जोशिमा के यहां चल रहे परिवारिक गोष्टी तक पढ़ा है।
दोस्तोएवस्की जी की रचनाओं में जटिलता है। अतः मैं इसे अपने ब्लॉग पर लिखने का निश्चय किया। ताकि इस रचना को जहां तक पढ़ा है वहां तक को अपने ब्लॉग पर लिख लेने से एक ‘सुधी पाठक’ के रूप में ताजा रहूं। कुछ दिनों के बाद पुनः पढ़ते समय कहानी का प्लॉट दिमाग़ में बना रहेगा।
कहानी का कथानक
ब्रदर्स करमाज़ोव के खंड 1 की कहानी शुरू होती है तीन भाइयों और उनके पिता फ्योदोर की कहानी से- इस भाग की कहानी की शुरुआत सभी पात्रों के चाल-चरित्र, विचार और उनके व्यवहारों के वर्णन से है।
इन तीनों भाइयों के पिता फेदोर ने दो शादियां की थी। पहली पत्नी से से दिमित्री तथा दुसरी पत्नी से ईवान और अल्योशा है। फेदोर का एक नजायज पुत्र भी है। इस कहानी का मुख्य खल पात्र फेदोर है। जिसे दस्तोएव्हिस्की जी ने अपना नाम दिया है। दमित्री(बड़े पुत्र) से फेदोर का संपत्ति को लेकर विवाद होता है। इसी पर बातचीत करने हेतु संत जोशिमा के यहां सभी एकत्रित होते हैं।

फेदोर कारमाजोव
यह एक छोटा जमीदार है।जो अपने आप को बहुत ही बोल्ड दिखाता है । परिस्थिति अनुसार बड़ी-बड़ी बातें हांकता है तो समयानुसार रोने भी लगता है । उसने अपनी पहली शादी इसी व्यवहार के कारण एक अमीर परिवार के लड़की से की थी जो उसमें अपने पसंदीदा नाटकों के हीरो वाला गुण देखी थी। माता-पिता से विरोध कर फेदोर से शादी की और अपने जिंदगी को जंजाल बना लिया।
फेदोर के विचार में कोई क्वालीटी नहीं है वह एक जोकर की तरह व्यवहार करता है। पक्का जुआड़ी है घर पर लफंगों को बुलाकर नसा करते रहता है। जिससे उसकी पहली पत्नी उसे छोड़ देती है। सभी उससे नफ़रत करते हैं।
दिमित्री (बडा भाई)
फेदोर का सबसे बड़ा पुत्र दिमित्री है। जब यह तीन चार साल का था तभी उसकी माता उसके पिता फेदौर को छोड़कर चली गई। फेदोर ने अपने बच्चे का कोई ख्याल नहीं रखा। वह अपने नशे और लफंगे दोस्तों के साथ व्यस्त रहा। जिससे युवा होने पर दिमित्री में भी अपने बाप की तरह अय्यासी और जुएं की लत लग जाती है।
दिमित्री क्रोधी, फिजुल खर्ची और हिंसक प्रवृत्ति का हो जाता है। संपत्ति के बंटवारे को लेकर इसका अपने पिता से विवाद हो जाता है।
ईवान और अल्योशा की मां
फेदोर की दूसरी पत्नी से ईवान और अल्योशा है। फेदोर ने अपनी दूसरी शादी भी अपने बड़ बोलेपन का दिखावा करके ही किया था। इन दोनों की नानी, फेदोर को पहचान गई थी कि यह एक मक्कार आदमी है। लेकिन फेदोर ने उनकी मां को अपने बातों में लुभा लिया था। शादी के बाद इन दोनों की मां से भी फेदोर की नहीं बनी।
फेदोर अपने में व्यस्त रहता था। जिससे उसकी दूसरी बीवी परेशान रहने लगी और दोनों बच्चों को लेकर अक्सर चीखती-चिल्लाती रहती थी। परेशान होकर पूजा-पाठ करने लगी थी।जिसका असर दोनों बच्चों पर अलग-अलग पड़ा।
ईवान
ईवान को अपनी माता के साथ होने वाले व्यवहार को देखकर लगा कि उसकी मां को कहीं से भी राहत नहीं मिल रही है। उसका झुकाव नास्तिकता की तरफ हो गया। उसके मन में यह बैठ गया कि अगर भगवान है तो उसकी माता को इतना कष्ट क्यों झेलना पड़ रहा है जबकि वह दिन रात उसकी पूजा करती है। ईवान पढ़ाई में मन लगाया। उसे विज्ञान विषय पसंद था। वह बुद्धिजीवी तो कहलाता है ।लेकिन उसके विचार असंतुलित रहते है।
अल्योशा
ईवान के उल्टा अल्योशा को लगने लगा था कि उसके मां को भगवान के यहां ही राहत मिलती थी। जिसका असर अल्योशा पर पड़ा कि उसका अध्यात्मिकता पर ज्यादा झुकाव हो गया। उसी के सलाह पर जोशीमा मठ में बाप बेटे के विवाद के निपटारे के लिए सभी इकट्ठा हुए थे। दोस्तोएवस्की कि इस कहानी में अल्योशा मुख्य पात्र है।…
बहुतो जगह पढ़ा है कि दोस्तोएवस्की के उपन्यास 19वीं सदी के रूस का दर्पण है। ब्रदर्स करमाज़ोव उपन्यास भी ईश्वर, आजाद ख्याल और नैतिकता पर बात करते हुए आगे बढ़ता हैं।
अभी इस किताब को पुरा पढ़ना है। मुझे भी दोस्तोएवस्की के साथ अपने विश्वास, शक-सुबहा और नैतिक जिम्मेदारियों को कारमाजोव ब्रदर्स में पूरा देखना है.. जो इसके दोनों खंड को खत्म करने के बाद अपना आकार लेगा।