
पी. अशोक कुमार एक तेलगु कथाकार हैं। उनकी रचना ‘जिगरी’ का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। इस किताब में एक भालू और मदारी की मार्मिक कहानी है।
‘जिगरी’ किताब की जानकारी मुझे आशीष सिंह जी के एक पोस्ट से हुई। आशीष सिंह जी साहित्यिक रचनाओं के बारे में फेसबुक पर लिखा करते हैं। जिसका लाभ हम जैसे पाठक उठाते हैं। साहित्यिक रचनाओं की खासियत होती है। ये विचारों को साफ-साफ पेश करने में मदद करती है। जिससे व्यक्ति में संवेदनशीलता और ज्ञान बढ़ता है। साहित्यिक रचनाओं को हर घर में जगह मिलनी चाहिए।

आशीष सिंह जी की इस (जिगरी) रिकमेंडेशन ने मेरे साहित्यिक किताबों/रचनाओं की महत्वपूर्ण लिस्ट में अपनी जगह बना ली है।इस महत्वपूर्ण लघु उपन्यास का हिंदी में अनुवाद जीएल रेडी जी ने किया है।
अशोक कुमार जी गणित के अध्यापक है। अब तक इनके दो उपन्यास और 6 कहानी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। उपन्यास ‘रेगिस्तान की लपटें’ और कहानी संकलन ‘प्रवासी जीवन’ उनकी दो महत्वपूर्ण रचनाएं हैं।
पी.अशोक कुमार अपने लिखने के बारे में कहते हैं कि: ”पाठशाला ही मेरी प्रयोगशाला है। बच्चों को पढ़ाना और कहानियां लिखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मेरे सामने दिखाई देनेवाले जीवन ने ही मुझसे लिखवाया है।” निश्चित रूप से उनकी इस किताब को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनका लिखना जाया नहीं गया है। कहानी ने जैसे खुद को पाठकों से जोड़ा है और जो संवेदना लाती है वह बहुत ही अनुपम है।
‘जिगरी’ अशोक कुमार जी का सबसे चर्चित उपन्यास है।जिसे उन्होंने एक हफ्ते तक एक मदारी के साथ रहकर उसके पेशे और उसके भालू के स्वभाव-व्यवहार का अध्ययन करने के बाद लिखा था।
प्रसिद्ध आलोचक श्री नामवर सिंह जी ने इस उपन्यास की भूमिका लिखी थी। इनकी भूमिका में ही इस कहानी का सारांश मिल जाता है। इसी भूमिका का अंश आगे पढ सकते हैं:
‘जिगरी का कथानक बहुत छोटा है। कथा के केंद्र में एक भालू है जिसे उसका मालिक ‘सादुल’ पुकारता है।मालिक एक इमाम, उसकी बीवी बिबम्मा और बेटा चांद है। चांद सादुल के ही हमउम्र है। कहानी वहां से चालू है जब चांद और सादुल दोनों 20 साल के हैं। फर्क सिर्फ यह है कि चांद जवान है और सादुल बूढा यानी किसी काम का नहीं। अतएव सादुल (भालू) से छुटकारा पाना है।
सवाल यह है कि उससे कैसे छुटकारा पाया जाए। इसी बीच यह सरकारी फरमान जारी होता है कि भालू पालना जुर्म है। इसी के साथ यह भी ऐलान होता है कि वन्य पशु पालना छोड़ने पर बेसहारा होने वाले लोगों को सरकार आजीविका के लिए कुछ जमीन देगी।
इमाम की बीवी और बेटा दोनों इमाम पर दबाव डालते हैं कि सादुल को किसी तरह जंगल में छोड़ दिया जाए। बीवी और बेटे के दबाव में इमाम उसे छोड़ने की कोशिश भी करता है, लेकिन कामयाब नहीं होता। दूसरी बार मां-बेटा विद्रोह कर देते हैं और यह तय होता है कि सादुल को जंगल में छोड़ आया जाए।
अंततः इमाम इसी इरादे से सादुल को लेकर जंगल में जाता है लेकिन दोनों में से कोई वापस नहीं आता है।
साफ है कि कहानी का कथानक बहुत छोटा है, लेकिन यह कहानी कहीं जिस ढंग से गई है। वह कला ही उसे अदित्य और अविस्मरणीय कथाकृति का दर्जा दिलाती है।’
इस संवेदनशील कहानी में भालू और मदारी के परिवार के क्रोध अपनत्व तथा उनके आत्मीय संबंधों का मार्मिक चित्रण किया गया है। अगर आपको कभी मौका मिले तो इसे पढ़े जरूर बहुत ही सुखद होता है ऐसी रचनाओं के संगत में रहना।
किताब- जिगरी। लेखक- पी अशोक कुमार। हिंदी अनुवाद- जे.एल. रेड्डी
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