- राजेन्द्र यादव जी(हंस के पुर्व संपादक) की स्मृति में उनकी लिखीं रचना ‘एक समानांतर दुनिया’ से,-‘जिम्मेदारी का तकाजा न घर के घुटन से चिपके रहकर मोक्ष लाभ पाने में है न घर की घुटन से भागकर मुक्ति पाने में है, वह तो घर को नई आवश्यकता के अनुसार बना लेने में ही है उसके लिए चाहे पुराने श्राद्धास्पद दिवारो को तोड़ना क्यों न पड़े।’
- ‘एक समानांतर दुनिया’ में वे आज़ादी के शुरूआती १५वर्षों में भारतीय कहानियों में व्यक्ति, परिवार, समाज को बयां करते हुए उनकी टीप्पणी।