
परे युरोप में यात्रा व खोजीं प्रवृत्ति की जिज्ञासा देने वाले मार्कोपोलो ही थे। इस विश्वविख्यात साहसी यात्री को ही यहां हम जानने की कोशिश कर रहे हैं।
आज से सात-आठ सौ वर्ष पूर्व एक देश से दूसरे देश यात्रा करना कितना ख़तरनाक था। इसका कल्पना करना बहुत ही कठिन है। मुख्यत: स्थल/समुन्द्री मार्ग से यात्रा करना पड़ता था। गांव और कस्बे एक दूसरे से दूर थे। लोगों को कफिले में यात्रा करना पड़ता था। रास्ते में लुटेरों का डर बना रहता।ऐसी परिस्थितियों में ही पोलो का परिवार 24 वर्षों तक दुनिया की यात्रा की। मार्को पोलो का जन्म 15 सितंबर 1254 में वेनिस हुआ था।
मार्को पोलो की यात्रा
मार्को पोलो की यात्रा का प्रारंभ सन् 1271 ई. में सत्रह वर्ष की उम्र में हुआ। उसकी यात्रा के शुरुआत के कारक उसके पिता-चाचा (निकोलो-मैतियो) थे। दोनों ही चालाक व्यापारी साहसी खोजकर्ता थे। अपने व्यापार को बढ़ावा देने हेतु नये-नये जगहों की खोज में लगे रहते थे। 1260 ई. में जब वेनिस में उथल-पुथल मची तो वह अपने निवेश को दूसरी जगह ले जाने हेतु प्रयासरत हो गये।

इसी प्रयास में वे कुबलई खान के दरबार में पहुंचे। जहां इन्होंने यूरोप, ईसाईयत और पोप के बारे में बताया। इन बातों पर खान महान ने दिलचस्पी जाहिर किया और उन्हें यह संदेश लेकर यूरोप भेजा। पोप , ऐसे सौ विद्वान जो ‘सातो कलाओं का ज्ञाता हो व ईसाईयत को साबित करें’ को उसके पास भेजें। उस समय पोप और यूरोप दोनों की हालत खराब थी। उनके पास सौ विद्वान थे ही नहीं। 2 वर्ष रूककर यह लोग 2 ईसाई साधुओं को साथ लेकर वापस निकलें। इसी यात्रा में निकोलो का नौजवान पुत्र मार्कपोलो भी शामिल हुआ।
वेनिस से शुरू हुई यात्रा
वेनिस से शुरू हुई यात्रा में तीनों पोलो कस्तंतुनिया से वोल्गा तट पहुंचे। वहाँ से फिलीस्तीन होकर आर्मीनिया, इराक और ईरान की खाड़ी तक गयें। यहां उन्हें भारत के व्यापारी मिले। ईरान से आगे पहाड़ों को पार करते हुए खुतन से लोपनोर झील, जो चलती फिरती झील कहलाती है। वहां से रेगिस्तान पार करके चीन के गांवो में पहुंचे। उनके पास एक शाही पासपोर्ट था वह खुद ‘खान महान’ की दी हुई सोने की तख्ती थी। जिसे रास्ते में उन्हें कोई समस्या उत्पन्न होने पर उसे दिखाकर वे सुरक्षित रह सकते थे।
इस बड़ी यात्रा का युवा मार्कपोलो को एक फायदा हुआ। उसे नई-नई भाषा सीखने का समय मिल गया। तीनों पोलो को वेनिस से पिकिंग में कुबलई के दरबार तक पहुंचते-पहुंचते लगभग 3 वर्ष लग गए। इस लंबे समय में मार्को का मंगोली भाषा पर पूरा अधिकार हो गया और चीनी भाषा पर भी।

कुबलई खान
कुबलई खान एक मंगोल शासक था। उस समय उसका विश्व के 20% भाग पर कब्जा था। उसने चीन में युआन वंश की स्थापना किया। पेकिंग को उसने अपनी राजधानी बनाया था। कुबलई खान, चंगेज खान का पोता था। अरबी और इरानी इतिहास लेखकों की नजर में चंगेज खान एक दानव है और उन सबने उसे ‘खुदा का कहर’ था। उसे बड़ा जालिम बताया गया है। चंगेज खान का चरित्र ही पूरे मंगोल शासकों का था।
उस समय पूरी दुनिया मंगोलों से भयभीत रहती थी। कुबलई खान पेकिंग में बसने और शरीफ चीनी सम्राट बन जाने के बाद विदेशी यात्रियों को बढ़ावा देता था। इसी दायरे में मार्कोपोलो के पिताजी और चाचा जी कुबलई के दरबार पहुंचे थे। अब उसी उद्देश्य वापस अपने पुत्र के साथ पोलो बंधु फिर से कुबलई दरबार में पहुंचे। जहां वह जिज्ञासु युवा मार्कोपोलो से प्रभावित हुआ तथा उसे अपने दरबार मैं जगह दिया।
चीनी यात्रा का वर्णन
चीनी यात्रा का वर्णन करना मार्क पोलो को खान महान के दरबार में शामिल हो जाने से आसान हो गया। पोलो ‘खान महान’ का चहेता हो गया। उसने 17 साल तक उसकी नौकरी किया। पीकिंग में उसकी नियुक्ति मंगोल साम्राज्य के सिविल सेवा में हुई। वह सरकारी कामों पर चीन के हर हिस्से में जाया करता था। अपनी इन यात्राओं के अपने अनुभव को उसने बाद में लिखा था। उसके अनुसार चीन में उस समय बड़े-बड़े बंदरगाह थे, जहां तमाम देशों के जहाजों की भीड़ रहती थी।
उस समय के चीन को पोलो ने लिखा है कि यह एक हरा-भरा खुशहाल देश है। जिसमें बहुत शहर और कस्बे हैं। वहां रेशमी और जरी के कपड़े बनते हैं। तमाम रास्तों पर मुसाफिरों के लिए बढ़िया सराय हैं। उसने लिखा है कि शाही फरमाने को पहुंचाने के लिए हरकारों का खास इंतजाम था। यह फरमान थोड़ी दूर पर बदले जाने वाले घोड़ों के जरिए 24 घंटे में 400 मील की दूरी तय कर लेते उसने चीन में कोयले खदानों का वर्णन किया है और कागज के नोट चलाए जाने का भी उसने वर्णन किया है।
चीन में 17 साल से रहते मार्कपोलो को अपने घर वेनिस की याद आती थी। लेकिन उसे कुबलई खान से अनुमति नहीं मिलती थी।

वापसी का संयोग
वापसी का संयोग, आखिरकार मार्कोपोलो को यह मौका मिल गया। ईरान में मंगोल शासक आरगोन की पत्नी मर गई जो कुबलई का चचेरा भाई था। वह फिर से शादी करना चाहता था। पत्नी के रूप में व अपने फिरके की स्त्री चाहता था। ऐसी स्त्री को अपने पास मंगाने के लिए उसने कुबलई के यहां संदेश भेजा। कुबलई खान ने एक नौजवान मंगोल राजकुमारी को पसंद किया। अपने भरोसेमंद तीनों पोलो को उसके लश्कर के साथ कर दिया क्योंकि वे अनुभवी यात्री थे।
यह लोग समुद्र के रास्ते दक्षिणी चीन से सुमात्रा गए। सुमात्रा में श्री विजय का बौद्ध सम्राज्य चल रहा था। मंगोल राजकुमारी व मंगोल कफिले के साथ हिंद महासागर में समुद्र से दो साल की वापसी यात्रा के दौरान आगे मार्को पोलो 1292 ई. में भारत के कोरोमंडल तट पर पहुंचे। उन्होंने तंजौर के पास तमिल पांड्यों के राज्य में प्रवेश किया। उन्होंने काकतीय राजवंश की रुद्रम्मा देवी के शासनकाल के दौरान दक्षिण भारत का दौरा किया था।
भारत की यात्रा
भारत की यात्रा में मार्क पोलो ने केरल के ‘कायल’ नामक एक प्राचीन नगर व बंदरगाह का वर्णन किया है। वहां के लोगों की समृद्धि देखकर चकित रहता है। अपने यात्रा विवरण में यहां के राजा के ठाठ-बाट और समुद्री मार्ग से आने वाले घोड़े व बिक्री के अन्य सामानों के आदान-प्रदान के व्यापार का उल्लेख किया है। वहां आने वाले कई देशों के व्यापारियों के व्यापार का वर्णन किया है।

राजकुमारी, मार्को और उनका लश्कर भारत में काफी दिन तक ठहरे। इसी बीच शादी का उम्मीदवार दूल्हा मर चुका था। पर उसकी मौत कोई बहुत बड़ा दुर्भाग्य साबित नहीं हुई। नौजवान राजकुमारी की शादी ईरान के युवराज से कर दी गई। पोलो ने राजकुमारी को वहीं छोड़कर कस्तंतुनिया होते हुए अपने वतन वेनिस चला गया।
अपने घर छोड़ने के 24 वर्ष बाद मार्को पोलो वेनिस वापस पहुंचा। किसी ने उसको नहीं पहचाना। पुराने दोस्तों और दूसरे लोगों पर छाप जमाने के लिए उसने एक दावत दी और इस दावत के बीच अपने फटे पुराने कपड़े फाड़ डाले। जिसमें से हीरे मोती पन्ना वगैरह गिर पड़े। मेहमान हैरत में आ गए। वह अपनी यात्रा की कहानियां लोगों को सुनाने लगा। वह लोगों के नजरों में एक लोकप्रिय कथाकार बन गया। लोग उसके यात्रा वृत्तांतों को सुनने के लिए उसके पास जमा रहते थे। लेकिन लोगों को लगता था कि यह बहुत ही बढा चढ़ाकर कर बातें कर रहा है।
कुछ दिनों बाद वेनिस व जिनेवा में युद्ध ठन गया। मार्को युद्ध में शामिल हुआ लेकिन 1296 में उसे पकड़ लिया गया और जेल में डाल दिया गया। उन्होंने अपना समय अपने साथी कैदी को अपनी यात्रा के बारे में बताने में बिताया। इस मित्र ने उनकी यात्रा वृत्तांत को अपनी कुछ कहानियों के साथ लिखा।
द ट्रेवल्स ऑफ मार्को पोलो
द ट्रेवल्स ऑफ मार्को पोलो, कैद में लिखी यह पुस्तक जल्द ही पूरे महाद्वीप में फैल गई। मार्को 1299 में रिहा हुआ और वेनिस में एक सफल व्यापारी बन गया।यह मार्क पोलो की यात्रा पर लिखें वृत्तांत ही था जिसने सभी यूरोपियन को चीन और मध्य एशिया से परिचित कराया । मार्क पोलो की इस यात्रा वृत्तांत ने युरोपीयन लोगों को पेपर मनी से परिचय कराया, साथ ही माना जाता है कि उसकी यात्रा वृतांत की किताब से ही पहली बार कोयले, चश्मा व एक जटिल डाक प्रणाली की जानकारी मिली, जिसका व्यापक उपयोग युरोप में होना शुरू हुआ।

मध्य एशिया, चीन व भारत के यात्रा में मार्क पोलो ने कुछ अजीब व भ्रमित करने वाले उल्लेख किया है। जैसे गैंडे का उल्लेख एक अजीब क्रियेचर की तरह,अगर आप जीवन में पहली बार गैंडा देखें तो उसे अजीब क्रिएचर समझ ही लेंगे। अपनी किताब में वह बंगाल की खाड़ी के आसपास कुत्तों के सरवाले इंसानों के पाये जाने का भी वर्णन किया है। चीन की यात्रा में सबका भविष्य बताने वाली तकदीरी चादर का। तुर्किस्तान के पास एक ऐसी जादुई झाड़ की चर्चा किया है। जिसके पास से जाने पर बहुत ही अजीब महसूस होता है।
फिर भी इन कुछ काल्पनिक कहानियों व उस देश काल की इस रोचक यात्रा वृतांत से कई युरोपीयन लोगों को जैसे कि कोलम्बस व अन्य खोजकर्ताओं को अपने रोमांचक यात्रा शुरू करने को प्रेरित किया। वेनिस में मार्कोपोलो की बीमारी से 8जनवरी 1324 में मौत हो गई।
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