पीटीसी सीतापुर में एडिशनल एसपी महोदय श्री राजेंद्र यादव जी की हफ्ते में एक क्लास लगती थी उनके द्वारा क्लास में अपराध पर बात करते हुए दस्तोएवस्की के चरित्र युवा स्कालनिकोव के अपराध करने की मानसिकता को जितना आसान ढंग उद्धृत किया उसके विपरीत इस साल मेरे द्वारा पढ़े गए किताबों ‘अपराध एवं दण्ड’ तथा ‘एकाकीपन के सौ साल’, ने पुरे दिमाग को हिला डाला।
‘अपराध एवं दण्ड’ और ‘एकाकीपन के सौ साल’ पढ़े जानें से पहले ही साल भर से मेरे पास थी.. अमूमन मैं जो किताबें अपने पास रखता हूं उसे म हीने के अंदर में पढ़ डालता हूं पर इन किताबों के साथ ऐसा नहीं हो पाया बीच-बीच में अन्य किताबें भी उठती रही लेकिन मैं इनको पूरा पढ़ने का जिज्ञासा रोक नहीं पाया धीरे-धीरे करके पूरे साल में इनको पढ़ सका ।
‘अपराध एवं दण्ड’ और ‘एकाकीपन के सौ साल’ के चरित्र आपको पूरी तरह से बदहवास कर डालते हैं….. इन दोनों रचनाओं में मानव के अपने विकास व नैतिक मूल्यों की खोजबीन के साथ पतनशीलता को बखूबी उकेरा गया है.. दास्तोएव्सकी का पात्र, दुख में है अपराध बोध से ग्रस्त, शराबी-जुआरी, जिंदगी से परेशान एक कुंठित यातना, से होते हुए पतनशीलता की तरफ बढ़ते जाते अपराधी बन जाता है जो बाद में अच्छे दुनियावी नैतिक मूल्य की एक उम्मीद बनाए रखता हैं वहीं मार्केस के पात्र अपने जिज्ञासा,खोज व मानव विकास के क्रम में बढ़ते हुए अपने पतनशीलता के साथ समाप्त हो जाते हैं…
फ्योदोर दस्तोएवस्की रूसी भाषा के महान साहित्यकार विचारक थे राज्य विरोधी दल के सदस्य होने के कारण उनको मृत्युदंड की सजा दी गई थी जिस दिन सजा अमल में आनी थी उसी दिन उनकी सजा निरस्त हो गई व 4 वर्ष के साइबेरिया में करावास में बदल गई, दस्तोएवस्की को मनोवैज्ञानिक विषय में लेखनी का प्रसिद्ध लेखक माना जाता है उनकी प्रमुख रचना में ‘अपराध एवं दण्ड’ , कारमाजोव ब्रदर्स, जुआरी व गरीब लोग हैं।
गैबयल गार्सिया मरकेज का जन्म कोलम्बिया में हुआ वे बीसवीं सदी के एक महान साहित्यकार थे.. 1982 में उन्हें ‘एकाकीपन के सौ वर्ष’ के लिए साहित्य का नोबेल का पुरस्कार मिला।
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