एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार व फिल्म निर्देशक जो इंसान को एक विकसित एवं अच्छे व्यक्ति के रूप में देखना चाहते थे।
लखनऊ आने के बाद से मेरे किताबी सोहबत में एक परिपक्वता आई जिसने मुझे देश दुनिया के महान शख्शियतों से रुबरू कराया। उन्हीं में से एक हैं ‘ख्वाजा अहमद अब्बास साहब’। हाल ही में उनकी एक कहानी ‘अबाबील’ पढ़ी है कहानी एक गुस्सैल व जालिम स्वभाव वाले किसान की है उसके इस व्यवहार के कारण गांव वाले उससे किनारा कर लेते हैं यहां तक की उसके बीवी और बच्चे भी उसे छोड़ देते हैं अपने अकेलेपन में वह अपने झोपड़े में एक घोसले रह रहे चिड़िया के बच्चों को अपने बच्चों के नाम से पुकारता है उनसे बातें किया करता है। इनकी घोंसले को बारिश से बचाने के लिए अपने छत की मरम्मत करते समय वह बुरी तरह से भीग जाता है और तेज बुखार से पीड़ित हो अपनी जान गंवा बैठता है । इसी प्रकार के सामाजिक सरोकार के अलावा संप्रदायिकता और भ्रष्टाचार पर उनकी कई कहानियां हैं
फिलवक्त मेरे पास उपलब्ध एक किताब ‘मुझे कुछ कहना है’ उनकी चुनिंदा कहानियों को डा. जोया जैदी द्वार प्रस्तुत की गई है। इस किताब की सबसे महत्वपूर्ण कहानियों में ‘अबाबील’ के साथ साथ अन्य कहानियों में’अलिफ लैला 1956′ में पढ़े लिखे नौजवान का फुटपाथ पर रहने के लिए मजबूर जीवन का वर्णन है, इस कहानी के बूढ़े भिखारी की शुरुआती शब्द ‘बेटा पहली ही रात सबसे कठिन होती है’ ने हम गाजीपुर वालों के मिलिट्री की भर्ती देखने वाले जवानों की जिंदगी के घर से बाहर रेलवे प्लेटफार्म के पत्थर की कुर्सियों तथा सड़क होटलो की कुर्सियों पर रात गुजारने की यादें ताजा कर गयी।
‘दो हाथ’ में एक चोर की कहानी है जो पहरेदारों के हट जाने का इंतजार करता है ताकि उनके जाने के बाद चोरी कर सकें मगर उसी समय भूचाल आ जाता है सारे मकान व दुकानें गिर जाती है, चोर खुश होता है कि अब उसे कोई रोकने वाला नहीं गिरे मकानों से अपने मन मुताबिक एक गठरी उठा कर ले जा रहा होता है कि एक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई देती है उसकी अंतरात्मा उसके पांव में बेड़ियां डाल देती है और वह गटरी फेंक कर बच्चे को उठा लेता है
उनकी व्यंग्यात्मक कहानी टिड्डी एक किसान की कहानी है जो अपनी फसल को टिड्डी दल से तो बचा लेता है परंतु फसल से कमाए पैसों को साहूकार और पटवारी जैसी सामाजिक टिड्डीयों से नहीं बचा पाता ।
बतौर पत्रकार ख्वाजा अहमद अब्बास साहब ब्लिट्ज मैगजीन के लिए ‘द लास्ट पेज’ और उर्दू में ‘आखरी कलम’ लिखते रहें उन्होंने 40 वर्षों तक लगातार ये दोनों स्तंभ लिखें। उनके द्वारा 25 फिल्में और कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाई अनेक फिल्मों की कहानियां लिखी खासतौर पर आवारा, 420, जागते रहो,बाबी और हिना।
इन्होंने अपनी वसीयत में लिखा है- जब मैं मर जाऊंगा तब भी मैं आपके बीच रहूंगा अगर मुझसे मुलाकात करनी है तो मेरी किताबें पढ़े और मुझे मेरे आखरी पन्नों में ढूंढे मेरी फिल्मों में खोजें। मैं और मेरी आत्मा इनमें है। इनकी कहानियों और लेखनी में समाज के लिए देश के लिए दुनिया के लिए संदेश है जो मानव को एक विकसित अच्छे व्यक्ति के रूप में देखना चाहते थे।
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इसमें वही है जो मैंने पढ़ा है